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नवीनतम संदेश 2

2021-07-14 18:28:01 जहाँगीरकालीन चित्रकला के बारे में


जहाँगीर के अधीन मुगल चित्रकला ने अधिकाधिक आकर्षण, परिष्कार एवं गरिमा प्राप्त की।

चित्रकला में रूढ़ियों के स्थान पर वास्तविकता के दर्शन होते हैं; संभवत: ऐसा बढ़ते हुए यूरोपीय प्रभाव के कारण हुआ।

इस काल में प्रकृति का अधिक सजीव और बारीक चित्रण किया गया है। पशु, पक्षी, पूलों, वनस्पतियों का बेहद सुंदर चित्रांकन किया गया है।

एक छोटे आकार के चित्र (मिनेयेचर) बनाने की परंपरा की शुरुआत हुई।

इस युग के विशिष्ट उदाहरण हैं- ‘अयार-ए- दानिश’ (पशुओं के किस्से-कहानी की पुस्तक) ‘गुलिस्तां’ (कुछ लघु चित्रकलाएँ,) ‘हाफिज़ का दीवान’ तथा ‘अनवर-ए-सुहावली’ आदि।

वर्जिन मैरी को अपने हाथ में पकड़े जहाँगीर का लघु चित्र (मिनेयेचर) प्रमुख है।

जहाँगीर के दरबार के प्रसिद्ध चित्रकार हैं- अकारिज़ा, आबुल हसन, मंसूर, बिशन दास, मनोहर, गोवर्धन, बालचंद, दौलत, मुखलिस, भीम और इनायत।

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2021-07-14 17:41:34
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शिवम नीखरा
Founder : Paperless Study
Unacademy Plus & Verified Educator.
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2021-07-14 17:24:25 अकबरकालीन चित्रकला के बारे में


इस शैली में प्रयुक्त रंग चमकदार हैं।

इसमें चेहरे के एक तरफ का हिस्सा ही चित्रित किया जाता था जिसमें आँखें मछली की तरह बनाई जाती थीं।

चित्र अलंकारिक न होकर व्यक्तियों या शबीहों के तथा घटना प्रधान हैं।

अकबरकालीन प्रमुख चित्र हैं- हमज़ानामा, अनवर-सुहावली, गुलिस्तां-ए-दीवान, आमिर शाही की दीवान, रज़्मनामा (महाभारत का फारसी अनुवाद), दराबनाम, अकबरनामा आदि।

अकबरकालीन प्रसिद्ध चित्रकार हैं- दसवंत, मिसकिन, नन्हा, बसावन, मनोहर, दौलत, मंसूर, केसू, भीम गुजराती, धर्मदास, मधु, सूरदास, लाल, शंकर, गोवर्धन और इनायत।

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2021-07-14 17:23:01 मुगलकालीन चित्रकला के बारे में


चित्रकला की मुगल शैली की शुरुआत सम्राट अकबर के शासनकाल में 1560 ई. में हुई।

मुगल शैली का विकास चित्रकला की स्वदेशी भारतीय शैली और फारसी चित्रकला की सफाविद् शैली के उचित संश्लेषण से हुआ।

प्रकृति के घनिष्ठ अवलोकन और उत्तम तथा कोमल आरेखन पर आधारित सुनम्य प्रकृतिवाद मुगल शैली की एक विशेषता है।

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2021-07-14 15:32:20
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2021-07-14 13:55:34
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2021-07-14 09:23:01 PaperLess Study ज्ञान श्रृंखला

राष्ट्रीय एवं राज्य मानवाधिकार आयोग

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights C0mmision-NHRC) एक सांविधिक निकाय है, जिसका गठन मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के तहत 12 अक्तूबर, 1993 को किया गया था। इसका गठन उन सिद्धांतों के अनुरूप है, जिन्हें अक्तूबर 1991 में पेरिस में मानव अधिकार संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिये राष्ट्रीय संस्थानों पर आयोजित पहली अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला में अंगीकृत किया गया था तथा 20 दिसंबर, 1993 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा स्वीकृत किया गया था। यह निकाय मानवाधिकारों के संरक्षण के क्षेत्र में भारत की सर्वोच्च संस्था है जो भारतीय संविधान एवं अंतर्राष्ट्रीय संधियों के आधार पर व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता, गरिमा जैसे मानवाधिकारों के सरंक्षण एवं प्रसार का कार्य करती है। इसके अलावा, मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के तहत राज्य स्तर पर राज्य मानवाधिकार आयोग लगभग सभी राज्यों में बनाए गए हैं। राज्य मानवाधिकार आयोग भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में राज्य सूची और समवर्ती सूची के अंतर्गत शामिल विषयों से संबंधित मानव अधिकारों के उल्लंघन की जाँच कर सकता है।

आयोग की प्रमुख शक्तियाँ


मानवाधिकार उल्लंघन के मामले से संबंधित गवाहों को समन भेजना

किसी दस्तावेज़ को ढूंढना और प्रस्तुत करना

किसी पब्लिक रिकॉर्ड को मांगना अथवा किसी न्यायालय अथवा कार्यालय से उसकी प्रति मांगना

गवाहों और दस्तावेज़ों की जाँच के लिये शासन पत्र जारी करना

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2021-07-14 07:50:04 PaperLess Study ज्ञान श्रृंखला

सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) क्या है?

सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) 1958 में एक अध्यादेश के माध्यम से लाया गया था तथा तीन माह के भीतर इसे कानूनी रूप दे दिया गया था।

भारत में संविधान लागू होने के बाद से ही पूर्वोत्तर राज्यों में बढ़ रहे अलगाववाद, हिंसा और विदेशी आक्रमणों से प्रतिरक्षा के लिये मणिपुर और असम में 1958 में AFSPA लागू किया गया था।

1972 में कुछ संशोधनों के बाद इसे असम, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम और नगालैंड सहित समस्त पूर्वोत्तर भारत में लागू किया गया था।

इन राज्यों के समूह को Seven Sisters के नाम से जाना जाता है। त्रिपुरा में उग्रवादी हिंसा के चलते 16 फरवरी, 1997 को AFSPA लागू किया गया था, जिसे स्थिति सुधरने पर 18 साल बाद मई 2015 में हटा लिया गया था। इसके कुछ वर्षों बाद केंद्र सरकार ने मेघालय के अलावा अरुणाचल प्रदेश के 16 में से 8 थाना क्षेत्रों से भी इसे हटा लिया गया था।

पंजाब में बढ़ते अलगाववादी हिंसक आंदोलन से निपटने के लिये सेना की तैनाती का रास्ता साफ करते हुए 1983 में केंद्र सरकार द्वारा AFSPA (Punjab & Chandigarh) अध्यादेश लाया गया जो 6 अक्तूबर को कानून बन गया। यह कानून 15 अक्तूबर, 1983 को पूरे पंजाब और चंडीगढ़ में लागू कर दिया गया। लगभग 14 वर्षो तक लागू रहने के बाद 1997 में इसे वापस ले लिया गया।

जम्मू-कश्मीर में हिंसक अलगाववाद का सामना करने के लिये सेना को विशेष अधिकार देने की प्रक्रिया के चलते यह कानून लाया गया, जिसे 5 जुलाई, 1990 को पूरे राज्य में लागू कर दिया गया, लेकिन राज्य का लेह-लद्दाख क्षेत्र इस कानून के अंतर्गत नहीं आता।

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2021-07-14 06:39:10
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