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मैं और हर्षिता जी और उनके बच्चे रह गये थे। रात का खाना बना, खा | ℍ𝕚𝕟𝕕𝕚 & 𝔼𝕟𝕘𝕝𝕚𝕤𝕙 𝕊𝕖𝕩 𝕊𝕥𝕠𝕣𝕪

मैं और हर्षिता जी और उनके बच्चे रह गये थे।
रात का खाना बना, खाया और सोने चल दिए।

उस दिन अनायास ही मैं रात 1 बजे के लगभग जाग गया.
कारण था किसी के सिसकने की आवाज़ … जो हाल की ओर से आ रही थी।

मैंने हाल में आकर देखा तो ये हर्षिता थी.
और मुझे देखते ही वो पलट कर पौंछ कर झूठी मुस्कान के साथ बोली- क्या हुआ? नींद नहीं आ रही हमारी मधु के बिना?

मैंने भी मज़ाक में कह दिया- तो आप आ जाइए सुलाने मधु की तरह!
वो ‘धत तेरे की’ बोलकर शरमा कर जाने लगी।

मैंने रोकते हुए कहा- मेरे लिए पानी लेते आइए. और आइए कुछ बात करनी है।

वो रसोई की ओर गयी और तभी बाहर बारिश होने लग गयी।
उन्होंने आवाज़ लगा कर बोला- चाय भी लाती हूँ।

खैर वो आई और मैंने उन्हें समीप ही बैठा कर पूछा- आप क्यूं रो रही थी? आपसे पहले भी मैंने कई बार आपकी उदासी का कारण पूछा … पर आपने टाल दिया। आज आपको बताना पड़ेगा … मेरी कसम!

ये कसम भी बड़े कमाल की चीज़ है … ऐसे मौकों पर बड़े काम आती है।

उन्होंने मुझसे वादा लिया मैं ये बात किसी को भी नहीं बताऊंगा।
मैंने वादा किया.

फिर वो फफक का रो पड़ी.
मैंने उनका सर अपने कंधे पर रख कर गालों को सहलाते हुए ढाढस बँधाया।

यह पहली बार था जब मेरे दिल में उनके लिए तरंगें उठी. यह अहसास किसी प्रेमिका के कंधे पर सर रखने पर ही आता है।

हर्षिता ने बताया की साले साहब अब उन्हें प्यार नहीं करते, पहले 4-5 साल तो कोई दिन नहीं रहता था जब वो उनके साथ घर आके समय नहीं बिताते थे और रोज़ रात प्यार नहीं करते थे ।
पर अब…
वो बोलते बोलते रुक गयी।

मैंने उत्सुकता वस पूछ लिया- तो अब क्या बदल गया?
वो बोली- अब तो महीनों बीत जाते हैं. ना वो समय बिताते हैं, ना शारीरिक सुख देने की ज़रूरत समझते हैं। शारीरिक ज़रूरत तो मैं जैसे तैसे उंगली करके शांत कर लेती हूँ … पर एक पत्नी को जो वक़्त जो अपनापन चाहिए वो कहाँ से लाये।

मैंने उन्हें समझने की कोशिश की, बोला- सब ठीक हो जाएगा।
और मैंने कहा- और मैं हूँ ना … जब साली आधी घरवाली हो सकती है तो ननदोई भी तो कुछ होता होगा।
वो मेरे मज़ाक पर मुस्कुरा दी।

तभी अचानक बहुत तेज़ बिजली कड़क गयी और उसकी आवाज़ इतनी तेज़ थी की एक बार तो मैं भी धम्म से हो गया पर हर्षिता ने मुझे कस के पकड़ लिया।
मुझे कुछ समझ नहीं आया कि यह अचानक क्या हुआ।

अचानक मेरी और हर्षिता की नज़रें मिली और जैसे हम कहीं खोने से लगे।

अनायास ही मेरे होंठ हर्षिता के काँपते होंठ की ओर बढ़ने लगे।
हमने कितने देर तक चुंबन किया … बता तो नहीं सकता … पर ऐसा लगा वक़्त रुक सा गया था।

जब हम होश में आए तो मौन आँखों से इजाजत माँगी कि आगे बढ़ें?
हर्षिता ने पलकेन झुका दी.
यह इशारा काफ़ी था।

मैंने हर्षिता, जो अब तक साले की पत्नी थी, उसे अपनी बांहों में उठाया और प्यार करते हुए अपने कमरे की ओर बढ़ रहा था।
घर में मेरे, उसके और बच्चों के सिवा कोई ना था.
और बच्चे सो रहे थे।

हमें अब ना डर था ना अब होश ही रहा था।

मैंने उन्हें ऐसे उठा रखा था जैसे कोई फूल हो जो मेरे से टूट ना जाए, इसकी फ़िक्र हो। मैंने बहुत सलीके से उन्हें बिस्तर पर टिकाया और थोड़ा उठने को हुआ तो हर्षिता ने मुझे खींच लिया।

उसके मौन इज़हार में एक कशिश थी कि बहुत तड़प चुकी हूँ! और ना तड़पा मेरे साजन!

मैंने भी खुद को खो जाने दिया।
मेरे मन में कॉन्डोम का विचार आया पर वो विचार खो सा गया.

और मेरे हाथ अब हर्षिता के उन्नत उरोजों पर बढ़ चले।
उसकी चूची को मसलते हुए मुझे मजा आ गया.
और जैसे वो भी इस आनन्द में खोने सी लगी.

और पता ही ना लगा कब उनकी साड़ी उनके बदन से पेटिकोट के साथ मेरे कमरे के फर्श पर थी।

मेरे होंठों को चूसने और कपड़ों के ऊपर से मसलने का असर उन पर दिखने लगा था।
बारिश के शोर में हरषु की मादक आवाजें आग में घी का काम कर रही थी।
मैं एक अलग ही दुनिया में खोने लगा.

पर यह अहसास मुझमें जिंदा रहा कि जो आज मेरे साथ है, उसे सिर्फ़ चुदाई नहीं, बल्कि प्रेम की आवश्यकता भी है।

हर्षिता ने पलकें उठाई और पूछ लिया- आप अब तक कपड़ों में क्यों हैं?
मैंने कहा- यह काम तो आपको खुद ही करना पड़ेगा।

हर्षिता ने वक़्त ना गंवाया और मेरे कपड़े एक पल में ही ज़मीन पर उसके कपड़ों के साथ पड़े थे।

कपड़ों के अलग होते ही हर्षिता ने मेरे पूरे बदन पर चुंबनों की झड़ी लगा दी।
उन्होंने अपनी ब्रा और पैंटी को भी उतार फेंका।

मैंने भी उसका साथ देने के लिए अपने एकमात्र कपड़े को दूर फेंक दिया।
अब हम दोनों जन्मजात नंगे थे।
आग से तपते बदन, बाहर बारिश और दो लोग जो अब एक हो जाने को बेताब थे।

मैं उनके चूचों पर अपने जीभ फेरने लगा और एक हाथ से दूसरे चूचे को मसलने लगा।
वो पागल सी होने लगी. मुलायम चूचों पर अब कड़कपन आने लगा जो हर्षिता की उत्तेजना को बता रहा था।

मैंने बहुत देर तक चूचों को चूसा।
दोनों को बारी से मर्दन करते हुए इश्क की आग में मैं उन्हें लिए जा रहा था।

दो बदन ऐसे लग रहे थे