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मैं अपने हाथ बांध कर बैठा था, तो उनका एक बूब मेरी कोहनी को छून | deshi kahani

मैं अपने हाथ बांध कर बैठा था, तो उनका एक बूब मेरी कोहनी को छूने लगा.
उन्होंने अपना बैग मेरी गोद में रख दिया और मुझसे चिपक गईं.
मतलब दीदी सो नहीं रही थीं, वो बस मज़ा लेना चाह रही थीं.
उन्होंने अपनी कांख में फंसाया हुआ पल्लू भी कंधे से गिराने के लिए अपनी साड़ी पिन हटा दी थी.
दीदी का पल्लू गिर गया था जिससे मेरा हाथ ढक गया था.
मैं समझ गया कि जब दीदी इतना कर रही हैं, तो पीछे रहने से मेरी मर्दानगी पर दाग लग जाएगा.
मैंने अपने हाथ से उनकी एक चूची पकड़ ली और धीरे धीरे दबाने लगा.
दीदी थोड़ा और मेरी तरफ को खिसक आईं ताकि मैं आसानी से उनकी चूची दबा सकूं.
मैं दीदी की चूची के निप्पल को ढूंढने लगा. अगले ही पल निप्पल मेरे हाथ लग गया तो मैं उसको अपने अंगूठे और उंगली से मसलने लगा.
दीदी आंख बंद करके मजे ले रही थीं. उनकी चूचियां नर्म नर्म थीं. मैं कामवासना में लंड दबाए जा रहा था.
तभी दीदी के बेटे ने उन्हें आवाज दी- मम्मी सुनो.
दीदी बोलीं- सोने दो, मुझे नींद लग रही है.
उनका बेटा चुप हो गया.
दीदी फिलहाल मजे लेने में व्यस्त थीं.
पर दोस्तो … मैं मजबूर था, दीदी से अपना लंड नहीं पकड़वा सकता था, कार में ऐसी ही नाजुक परिस्थिति थी.
मैंने दीदी की चूची को ब्रा और ब्लाउज से बाहर निकालने की बहुत कोशिश की, मगर दीदी ने कंधे पर से ही अपना सिर ना में हिला दिया. मैंने उत्तेजना में चूची जोर जोर से दबाना शुरू कर दी.
उनसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था, तो द्विअर्थी भाषा में मुझे इशारा करती हुई ड्राइवर से बोलीं- गाड़ी धीरे चलाओ.
मैंने मुस्कुरा कर दीदी की चूची को हल्के हाथ से दबाना शुरू कर दिया.
अब हम लोग घर पहुंचने वाले थे.
दीदी एकदम सहज हो गई थीं मगर उनकी आंखों में चुदाई का नशा मुझे साफ़ समझ आ रहा था.
गाड़ी से उतरते ही बच्चे बाथरूम चले गए.
मेरा लंड तना हुआ था, तो मैं दीदी से बोला- आप चलिए, मैं किराया देकर आता हूं.
दीदी अन्दर चली गईं.
मैं कार वाले का किराया देकर लॉबी में बैठ गया.
लॉबी के एकदम सामने दीदी का रूम था, उनके कमरे का दरवाज़ा हल्का सा खुला था.
अन्दर दीदी कपड़े बदल रही थीं. उन्होंने साड़ी उतारकर दरवाज़ा खोल दिया और मुस्कुराती हुई आंख मारके पेटीकोट और ब्लाउज में सामने खड़ी हो गईं.
उफ्फ … काले ब्लाउज में दीदी की ब्रा ट्यूबलाइट की तरह टिमटिमा रही थी.
बिना बोले हम दोनों के बीच इतना सब हो गया था. फिर अब तो दीदी ने मैदान खुला छोड़ दिया था.
मैं लॉबी में मुस्कुराते हुए अपना लंड मसल रहा था. मैंने इशारे से ब्लाउज खोलने को कहा.
उन्होंने नीचे का बस एक हुक खोला और शर्मा कर दरवाज़ा बंद कर दिया.
फिर दीदी मैक्सी पहन कर बाहर आ गईं. उनकी चूचियां एकदम तनी हुई थीं और बिना ब्रा के डोल रही थीं, निप्पल्स साफ झलक रहे थे.
मैं बेशर्मों की तरफ दीदी की चूचियों को देख रहा था और वो अपनी चुचियों को हिलाती हुई दिखा रही थीं.
तभी उनके बच्चों की आवाज आई तो दीदी बोलीं- चाय पीकर जाना.
मैं लॉबी से किचन में आ गया.
वो शर्मा कर लाल हो चुकी थीं क्योंकि मैंने उनकी चूची बहुत दबाई थीं.
किचन में मौका पाकर मैंने पीछे से दोनों चूचियां पकड़ लीं और कहा- चाय नहीं, मुझे दूध पीना है.
वो बोली- छोड़ बेशर्म, अब उनमें दूध नहीं आता.
मैं पीछे से आगे हाथ किये हुए था और दीदी के दोनों निप्पल्स मींजते हुए बोला- मैं दूध भी निकाल दूंगा, इसमें कौन सी बड़ी बात है.
दीदी ने मुझे अपनी कोहनी मारते हुए अलग कर दिया और हंसने लगीं.
फिर थोड़ी दूर खड़े होकर मैंने पूछा- मेरा इलाज कब होगा?@desi_story