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वो शायद आने जाने का धन्यवाद देने के एवज में ऐसा करती थीं. मैं | deshi kahani

वो शायद आने जाने का धन्यवाद देने के एवज में ऐसा करती थीं.
मैं दीदी के यहां पहुंचा, तो दीदी ने साड़ी पहनी हुई थी.
दीदी ने अपनी साड़ी के पल्लू से पीठ ढकी हुई थी, फिर वो पल्ला छाती से ले जाकर दूसरी तरफ अपनी कांख में फंसा लिया था.
मतलब ना उनकी पीठ देखी जा सकती थी और ना साइड से बूब्स.
मगर ऐसे में बूब्स के उभार बड़े मस्त दिख रहे थे.
अब बाइक पर तो अकेले दीदी की गांड ही मुश्किल से सैट होती थी तो चार लोग कैसे बैठ सकते थे.
हम लोगों ने एक कैब बुक की.
उनके बच्चे बहुत चंट हैं. दोनों बच्चे खिड़की पकड़ कर बैठ गए. लड़की आगे बैठ गई. लड़का पीछे एक किनारे, मैं बीच में … और दीदी दूसरी साइड.
गाड़ी चल दी, दीदी ने साड़ी हटा दी. अब उनकी चिकनी कमर दिख रही थी. साइड से बूब्स भी दिखने लगे थे.
दादा रे … काले रंग का ब्लाउज पहनी हुई थी; एकदम पारदर्शी टू बाय टू रुबिया का ब्लाउज था.
आप लोगों को पता ही होगा ये कितना झीना कपड़ा होता है. उनके इस ब्लाउज में से सफेद प्रिंटेड ब्रा दिख रही थी. उनकी ब्रा पर लाल नीले गोल गोल डॉट प्रिंट थे.
मेरा लंड बेकाबू हो गया, मैं समझ गया कि ये मुझे उत्तेजित करने के लिए ऐसा कर रही हैं.
कार में वो एक बार खिड़की की तरफ मुड़ीं, तो पीछे से उनकी ब्रा की पट्टी झलकने लगी थी.
उस पर साइज़ टैग साफ दिख रहा था और 36 इंच लिखा था.
दीदी की गोरी पीठ मुझे गर्म किए जा रही थी.
मुझसे तो बर्दाश्त से बाहर होने लगा था.
मैंने अपने दोनों हाथ लंड पर रख लिए. दीदी इस पर भी नहीं मानीं. उन्होंने अपनी एक चूची मेरी कोहनी में सटा दी और मुझसे बात करने लगीं.
मेरा हाल बुरा हो रहा था, लंड मान ही नहीं रहा था.
दीदी मेरे चेहरे के भाव देख कर मजा ले रही थीं.
मेरा हाल ना मरने लायक था, ना जीने लायक था.
जब अपने गंतव्य पर पहुंचकर हम सब कार से निकले, तो दीदी ने फिर से साड़ी लपेट ली और सुशील महिला बन गईं.
अब मैं समझ गया कि इनको एक बार चोदना ही पड़ेगा.
बच्चे और हम दोनों, सब लोग पार्क में आ गए.
उधर का नजारा बड़ा हसीन था. पति पत्नी लड़के लड़की सब थे, कोई कोई तो किस कर रहा था … कोई किसी की चूची दबा रहा था.
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ये सब देख कर मैं कामयोग की गहराई में पहुंच कर सोच रहा था कि अभी दीदी की चूत मिल जाए तो हचक के पेल दूँ.
दीदी की भी नज़रें वही सब देख रही थीं, जो मेरी नजरें देख रही थीं. कामाग्नि में हम दोनों जल रहे थे.
तभी एक बहुत मोटा आदमी दिखा, जिसका पेट बहुत बाहर निकला था. बच्चे उसे देख कर हंसने लगे.
दीदी बोलीं- हंस क्या रहे हो? तुम्हारे पापा का भी तो ऐसे ही है.
मैं एकदम से समझ गया कि इनकी चुदाई अच्छे से नहीं हो पाती होगी. जीजा का पेट बाहर निकलने के कारण ये चुदासी ही रहती होंगी.
वैसे भी जीजा जी को साल में एक बार आना होता है और उस पर भी दीदी की चुत लंड के लिए भूखी ही बनी रहती होगी.
दीदी के बच्चे आगे आगे दौड़ रहे थे और दीदी मुझसे चिपक कर चल रही थीं.
कभी कभी उनकी चूची मेरी बांह से छू जाती, तो कभी उनका हाथ मेरे खड़े लंड पर चला जाता.
मैंने दीदी से कहा- कहीं बैठा जाए.
दीदी ने हां कर दी.
हम दोनों एक जगह बैठ गए और बच्चे खेलने लगे.
दीदी मेरे पास ही बैठी थीं.
अब उनको लेकर मेरे अन्दर अधिकार की भावना आने लगी थी. मैंने सोचा अगर दीदी से अपने मन की बात बोल देता हूँ, या तो मामला आर होगा या पार.
मैंने उत्तेजना में दीदी से कह दिया- पब्लिक प्लेस में थोड़े सही कपड़े पहन कर बाहर आया जाता है.
दीदी समझ गईं कि मैं ब्लाउज की बात कर रहा हूँ. वो हंसती हुई बोलीं- कौन सा सबको दिखा रही हूं.
मैं तुरंत समझ गया कि आग उधर भी लगी है. अब दीदी ने साइड से बूब्स दिखाने शुरू कर दिए. मेरा ध्यान वहीं था.
दीदी मेरी नज़रों से गर्म हो रही थीं. उनकी चूचियां तनी हुई लग रही थीं.
काफी देर तक पार्क में घूमने के बाद हम दोनों बच्चों को लेकर घर की तरफ रवाना हो गए.
रास्ते में दीदी को नींद लगने सी लगी या वो सोने का ड्रामा करने लगीं.
उन्होंने मेरे कंधे पर सिर रख दिया और ऊंघने लगीं. @desi_story