2022-06-14 14:30:19
एक बार मुगल सरदार बहलोल खाँ एवं शिवाजी महाराज की सेनाओं में युद्ध चल रहा था । शिवाजी महाराज युद्ध के विचारों में ही खोये हुए थे कि सेनापति भामलेकर तेजी से घोड़े को दौड़ाते हुए शिवाजी महाराज के पास आये । भामलेकर को देखकर ही शिवाजी महाराज समझ गये कि ये विजयी होकर आये हैं किंतु उनके पीछे दो सैनिक जो डोली लेकर आ रहे थे, उसके बारे में उनको कुछ समझ में नहीं आया । वे दौड़कर नीचे आये और भामलेकर को गले लगा लिया ।
भामलेकर ने कहा : ‘‘ राजे ! आज मुगल सेना दूर तक खदेड़ दी गयी है । बेचारा बहलोल खाँ जान बचाकर भाग गया । अब हिम्मत नहीं कि मुगल सेना इधर की तरफ मुँह भी कर सके ।’’
शिवाजी महाराज : ‘‘वह तो मैं तुम्हें देखकर ही समझ गया था, भामलेकर ! किंतु इस डोली में क्या है ?’’
अट्टहास्य करते हुए भामलेकर ने कहा : ‘‘इसमें मुस्लिमों में सुंदरता के लिए प्रसिद्ध बहलोल खाँ की बेगम है, महाराज ! मुगल सरदार ने हजारों-लाखों हिन्दू नारियों का सतीत्व लूटा है । उसी का प्रतिशोध लेने के लिए मेरी ओर से आपको यह भेंट है ।’’
यह सुनकर शिवाजी महाराज अवाक् रह गये । उन्हें अपने किसी सरदार और सामन्त से ऐसी मूर्खता की आशा नहीं थी । कुछ देर ठहरकर वे डोली के पास गये तथा पर्दा हटाया और बहलोल खाँ की बेगम को बाहर आने के लिए कहा । डरती-सहमती वह बाहर आयी।
उन्होंने अपने एक अन्य अधिकारी को आदेश दिया कि वह बेगम को बाइज्जत ले जाकर बहलोल खाँ को सौंप दे । फिर भामलेकर की ओर मुड़कर बोले : ‘‘तुम मेरे साथ इतने दिनों तक रहे पर मुझे पहचान नहीं पाये । वीर उसे नहीं कहते जो अबलाओं पर प्रहार करे, उनका सतीत्व लूटे । हमें अपनी सांस्कृतिक गरिमा और मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए ।’’
शिवाजी महाराज के कथन को सुनकर भामलेकर को अपनी भूल के लिए पश्चात्ताप होने लगा । इधर बेगम को ससम्मान लौटाया हुआ देखकर बहलोल खाँ भी विस्मित हुए बिना नहीं रहा । वह तो सोच रहा था कि ‘अब उसकी सबसे प्रिय बेगम शिवाजी के महल की शोभा बन चुकी होगी ।’
परंतु बेगम ने अपने पति को छत्रपति के बारे में जो कुछ बताया वह जानकर तथा अधिकारी के हाथों भेजा गया पत्र पढ़कर बहलोल खाँ जैसा क्रूर सेनापति भी पिघल गया । पत्र में शिवाजी महाराज ने अपने सेनानायक की गलती के लिए क्षमा माँगी थी । इस पत्र को देखकर स्वयं को बहुत महान् वीर और पराक्रमी समझनेवाला बहलोल खाँ अपनी ही नजर में छत्रपति शिवाजी महाराज के सामने बहुत छोटा दिखाई देने लगा । उसने निश्चय किया कि ‘इस फरिश्ते को देखकर ही दिल्ली लौटूँगा।’
इसके लिए आग्रह-पत्र भेजा गया । बहलोल खाँ और शिवाजी महाराज के मिलने का स्थान निश्चित हुआ । नियत तिथि, समय व स्थान पर शिवाजी महाराज बहलोल खाँ से पहले ही पहुँच गये । बहलोल खाँ जब वहाँ पहुँचा तो पश्चात्ताप व आत्मग्लानि के साथ-साथ शिवाजी महाराज के व्यक्तित्व के प्रति श्रद्धाभाव से इतना अभिभूत था कि देखते ही उनके पैरों में झुक गया और बोला : ‘‘माफ कर दो मुझे मेरे फरिश्ते ! बेगुनाहों का खून मेरे सर चढ़कर बोलेगा और मैं उनकी आह से जला करूँगा । उस समय आपकी सूरत की याद मुझे थोड़ी-सी ठंडक पहुँचायेगी ।’’
‘‘जो हुआ सो हुआ । अब आगे का होश करो ।’’ एक पराजित और श्रद्धानत सेनापति को गले लगाते हुए छत्रपति शिवाजी ने कहा ।
इन सबके मूल में क्या था ? समर्थ रामदास जैसे महापुरुष का सान्निध्य, यौवन-सुरक्षा के सिद्धांत का आदर, सज्जनता एवं दृढ़ संयम । अपने संयम के कारण ही वे भारतीय संस्कृति की गरिमा को बनाये रखने में सक्षम हुए एवं शत्रु के हृदय में भी अपना स्थान बना सके ।
हे भारत के युवानों ! उठो, जागो और अपने पूर्वजों के गौरव को याद करो । अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए कमर कसकर तैयार हो जाओ । अश्लील फिल्म, उपन्यास, साहित्य आदि गंदगी से बचो एवं ‘यौवन-सुरक्षा’ जैसी पुस्तकें पढ़कर, छत्रपति शिवाजी महाराज जैसे महान् योद्धाओं का जीवन-चरित्र पढ़कर एवं ऋषि-मुनियों की दिव्य देन सत्शास्त्रों को पढ़कर अपने जीवन को उन्नत बनाओ। सत्संग-श्रवण करके, संतों के द्वारा श्रेष्ठ मार्गदर्शन पाकर, संयम एवं सदाचार का आश्रय लेकर अपने जीवन में भी ओजस्विता-तेजस्विता भर दो । पाश्चात्य जगत के अंधानुकरण से बचकर रॉक-पॉप, डिस्को आदि जीवन-शक्ति का ह्रास करनेवाली विकृति से बचकर अपनी भव्य भारतीय संस्कृति को अपनाओ । शाबाश वीर ! शाबाश…
~ ऋषि प्रसाद, अप्रैल 1998
213 viewsSanatani Boy, 11:30