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ब्रह्मचर्य ही जीवन (हरीॐ)

टेलीग्राम चैनल का लोगो bramachrya01 — ब्रह्मचर्य ही जीवन (हरीॐ)
टेलीग्राम चैनल का लोगो bramachrya01 — ब्रह्मचर्य ही जीवन (हरीॐ)
चैनल का पता: @bramachrya01
श्रेणियाँ: प्रेमकाव्य
भाषा: हिंदी
ग्राहकों: 2.45K
चैनल से विवरण

ब्रम्हचर्य पालन करने वालो के लिये विश्व का सर्वोत्तम टेलिग्राम चॅनल,
यहा पर आपको ब्रम्हचर्य के बारे मैं सटीक और सही जानकारी मिलेगी लेख, pdf और पुस्तके |
इस भारतवर्ष मैं फिर से ब्रम्हचर्य की महिमा का परिचय सबको कराये यही हमारा उद्देश है|
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2022-08-18 12:27:47
651 views09:27
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2022-08-18 12:27:45
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2022-06-15 07:30:32
106 viewsSanatani Boy, 04:30
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2022-06-15 05:28:25 ┏━━━°❀•°: - :°•❀°━━━┓
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2022-06-15 04:29:20 ━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
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2022-06-14 14:30:19 एक बार मुगल सरदार बहलोल खाँ एवं शिवाजी महाराज की सेनाओं में युद्ध चल रहा था । शिवाजी महाराज युद्ध के विचारों में ही खोये हुए थे कि सेनापति भामलेकर तेजी से घोड़े को दौड़ाते हुए शिवाजी महाराज के पास आये । भामलेकर को देखकर ही शिवाजी महाराज समझ गये कि ये विजयी होकर आये हैं किंतु उनके पीछे दो सैनिक जो डोली लेकर आ रहे थे, उसके बारे में उनको कुछ समझ में नहीं आया । वे दौड़कर नीचे आये और भामलेकर को गले लगा लिया ।

भामलेकर ने कहा : ‘‘ राजे ! आज मुगल सेना दूर तक खदेड़ दी गयी है । बेचारा बहलोल खाँ जान बचाकर भाग गया । अब हिम्मत नहीं कि मुगल सेना इधर की तरफ मुँह भी कर सके ।’’

शिवाजी महाराज : ‘‘वह तो मैं तुम्हें देखकर ही समझ गया था, भामलेकर ! किंतु इस डोली में क्या है ?’’

अट्टहास्य करते हुए भामलेकर ने कहा : ‘‘इसमें मुस्लिमों में सुंदरता के लिए प्रसिद्ध बहलोल खाँ की बेगम है, महाराज ! मुगल सरदार ने हजारों-लाखों हिन्दू नारियों का सतीत्व लूटा है । उसी का प्रतिशोध लेने के लिए मेरी ओर से आपको यह भेंट है ।’’

यह सुनकर शिवाजी महाराज अवाक् रह गये । उन्हें अपने किसी सरदार और सामन्त से ऐसी मूर्खता की आशा नहीं थी । कुछ देर ठहरकर वे डोली के पास गये तथा पर्दा हटाया और बहलोल खाँ की बेगम को बाहर आने के लिए कहा । डरती-सहमती वह बाहर आयी।

उन्होंने अपने एक अन्य अधिकारी को आदेश दिया कि वह बेगम को बाइज्जत ले जाकर बहलोल खाँ को सौंप दे । फिर भामलेकर की ओर मुड़कर बोले : ‘‘तुम मेरे साथ इतने दिनों तक रहे पर मुझे पहचान नहीं पाये । वीर उसे नहीं कहते जो अबलाओं पर प्रहार करे, उनका सतीत्व लूटे । हमें अपनी सांस्कृतिक गरिमा और मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए ।’’

शिवाजी महाराज के कथन को सुनकर भामलेकर को अपनी भूल के लिए पश्चात्ताप होने लगा । इधर बेगम को ससम्मान लौटाया हुआ देखकर बहलोल खाँ भी विस्मित हुए बिना नहीं रहा । वह तो सोच रहा था कि ‘अब उसकी सबसे प्रिय बेगम शिवाजी के महल की शोभा बन चुकी होगी ।’

परंतु बेगम ने अपने पति को छत्रपति के बारे में जो कुछ बताया वह जानकर तथा अधिकारी के हाथों भेजा गया पत्र पढ़कर बहलोल खाँ जैसा क्रूर सेनापति भी पिघल गया । पत्र में शिवाजी महाराज ने अपने सेनानायक की गलती के लिए क्षमा माँगी थी । इस पत्र को देखकर स्वयं को बहुत महान् वीर और पराक्रमी समझनेवाला बहलोल खाँ अपनी ही नजर में छत्रपति शिवाजी महाराज के सामने बहुत छोटा दिखाई देने लगा । उसने निश्चय किया कि ‘इस फरिश्ते को देखकर ही दिल्ली लौटूँगा।’

इसके लिए आग्रह-पत्र भेजा गया । बहलोल खाँ और शिवाजी महाराज के मिलने का स्थान निश्चित हुआ । नियत तिथि, समय व स्थान पर शिवाजी महाराज बहलोल खाँ से पहले ही पहुँच गये । बहलोल खाँ जब वहाँ पहुँचा तो पश्चात्ताप व आत्मग्लानि के साथ-साथ शिवाजी महाराज के व्यक्तित्व के प्रति श्रद्धाभाव से इतना अभिभूत था कि देखते ही उनके पैरों में झुक गया और बोला : ‘‘माफ कर दो मुझे मेरे फरिश्ते ! बेगुनाहों का खून मेरे सर चढ़कर बोलेगा और मैं उनकी आह से जला करूँगा । उस समय आपकी सूरत की याद मुझे थोड़ी-सी ठंडक पहुँचायेगी ।’’

‘‘जो हुआ सो हुआ । अब आगे का होश करो ।’’ एक पराजित और श्रद्धानत सेनापति को गले लगाते हुए छत्रपति शिवाजी ने कहा ।

इन सबके मूल में क्या था ? समर्थ रामदास जैसे महापुरुष का सान्निध्य, यौवन-सुरक्षा के सिद्धांत का आदर, सज्जनता एवं दृढ़ संयम । अपने संयम के कारण ही वे भारतीय संस्कृति की गरिमा को बनाये रखने में सक्षम हुए एवं शत्रु के हृदय में भी अपना स्थान बना सके ।

हे भारत के युवानों ! उठो, जागो और अपने पूर्वजों के गौरव को याद करो । अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए कमर कसकर तैयार हो जाओ । अश्लील फिल्म, उपन्यास, साहित्य आदि गंदगी से बचो एवं ‘यौवन-सुरक्षा’ जैसी पुस्तकें पढ़कर, छत्रपति शिवाजी महाराज जैसे महान् योद्धाओं का जीवन-चरित्र पढ़कर एवं ऋषि-मुनियों की दिव्य देन सत्शास्त्रों को पढ़कर अपने जीवन को उन्नत बनाओ। सत्संग-श्रवण करके, संतों के द्वारा श्रेष्ठ मार्गदर्शन पाकर, संयम एवं सदाचार का आश्रय लेकर अपने जीवन में भी ओजस्विता-तेजस्विता भर दो । पाश्चात्य जगत के अंधानुकरण से बचकर रॉक-पॉप, डिस्को आदि जीवन-शक्ति का ह्रास करनेवाली विकृति से बचकर अपनी भव्य भारतीय संस्कृति को अपनाओ । शाबाश वीर ! शाबाश…

~ ऋषि प्रसाद, अप्रैल 1998
213 viewsSanatani Boy, 11:30
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2022-06-14 07:30:34
249 viewsSanatani Boy, 04:30
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2022-06-13 15:30:55 निरंतर खुद को भी और दूसरों को भी क्षमा करने की ताक़त सिर्फ और सिर्फ आध्यात्मिक प्रेम में होती हैं,
तभी आप किसी का मन परिवर्तित कर सकते हैं, तो प्रेम मांगिये नहीं प्रेम का झरना स्वयं बन जाइए, जब प्रेम आपके भीतर से निरंतर बहेगा, तब जो बात आपके पास नहीं हैं वो निर्माण होने लगेगी !
302 viewsSanatani Boy, 12:30
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2022-06-13 07:31:01 अब इन प्राणियों की संख्या को देखते हुए यही बात समझ में आती है, कि *"संसार में पाप कर्म अधिक होते हैं, और पुण्य कर्म बहुत कम। इसी कारण से मनुष्य से भिन्न प्राणियों की संख्या बहुत अधिक है, और मनुष्यों की बहुत कम, अर्थात उन्नति करने वाले लोग बहुत कम दिखते हैं। अधिकतर लोग तो पतन की ओर ही चल रहे हैं।"* पहाड़ी का उदाहरण हमारे सामने है। हमने देखा है, आपने भी देखा होगा, तथा आप हम में से बहुत लोगों ने अनुभव भी किया होगा, कि *"जब सीधी पहाड़ी पर चढ़ना होता है, तो अपने शरीर का संतुलन बनाने के लिए कुछ आगे की ओर झुकना पड़ता है। तब शरीर का संतुलन ठीक बनता है, और व्यक्ति धीरे-धीरे पहाड़ी पर चढ़ जाता है। यदि पहाड़ी से नीचे उतरना हो, तब भी शरीर का संतुलन बनाना आवश्यक होता है। तब आगे की ओर नहीं झुकते, बल्कि पीछे की ओर झुकना होता है, तभी शरीर का संतुलन ठीक बनता है, और व्यक्ति धीरे-धीरे पहाड़ी से नीचे की ओर उतर आता है।"*
अब यही बात जीवन में भी आप देख सकते हैं। *"अधिकांश लोग तो वैसी ही अकड़ में जी रहे हैं, जैसे कि पहाड़ी से नीचे उतरने वाले लोग अकड़कर पहाड़ी से नीचे उतरते हैं। और बहुत थोड़े लोग ऐसे भी दिखते हैं, जो झुक कर चलते हैं, अर्थात नम्रतापूर्वक सारे कार्य करते हैं। वे पहाड़ी पर चढ़ने वाले लोगों के समान हैं।"* इससे सार यह निकला, कि *"यदि किसी को पहाड़ी पर चढ़ने जैसी उन्नति करनी हो, तो उसे जीवन में अपने सब कार्य नम्रतापूर्वक करने पड़ेंगे, तभी उसकी सही उन्नति हो पाएगी। और जो लोग अकड़ कर चलते हैं, अर्थात दुष्टकर्म करते हैं, वे सब तो पतन की ओर ही जा रहे हैं, जैसे पहाड़ से नीचे उतरने वाला व्यक्ति अकड़ कर नीचे उतरता है।" "ऐसा सबको समझ लेना चाहिए और सबको सावधानी से चलना चाहिए, ताकि अपनी उन्नति कर सकें, तथा पतन से बच सकें।"*
----- *स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, रोजड़, गुजरात।*
337 viewsSanatani Boy, 04:31
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2022-06-13 07:30:52
24.5.2022
*"कुछ लोग जीवन में उन्नति करते हैं, और कुछ लोग पतित हो जाते हैं। ये घटनाएं प्रतिदिन देखने सुनने को मिलती हैं। समाचार पत्रों में और टेलीविजन आदि में बुरी घटनाओं के समाचार अधिक देखने सुनने पढ़ने को मिलते हैं, अच्छे समाचार तो बहुत कम मिलते हैं।"*
इसके साथ साथ हम संसार में यह भी देखते हैं, कि मनुष्यों की संख्या संसार में बहुत कम है, जबकि कीड़े मकोड़े सांप बिच्छू वृक्ष वनस्पति शेर भेड़िए जंगली जानवर समुद्री जीव आदि संख्या में बहुत अधिक हैं। शायद मनुष्यों की तुलना में लाखों गुना अधिक हैं। *"मनुष्य जन्म तो पुण्य कर्मों से मिलता है, इस बात को प्रायः सभी जानते हैं। और जो पशु पक्षी कीड़ा मकोड़ा वृक्ष आदि योनियां हैं, वह बुरे कर्मों का ही फल है।"*
334 viewsSanatani Boy, 04:30
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